नये आपराधिक कानून 2023 ( New criminal Laws2023) 1 जुलाई से होंगे लागू

Shikshalaw

एडल्ट्री को फिर से अपराध बनाया जाए:संसदीय पैनल ने सरकार से की सिफारिश, IPC बिल पर सौंपी रिपोर्ट(New Laws)


2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री कानून रद्द कर दिया था। इसके तहत शादीशुदा महिला/पुरुष किसी अन्य से संबंध बनाए तो संबंध बनाने वाले पुरुष पर केस दर्ज होता था। -सिम्बॉलिक इमेज

शादीशुदा महिला/पुरुष के किसी दूसरे से संबंध बनाने (एडल्ट्री या व्यभिचार) को फिर से अपराध बनाया जाना चाहिए, क्योंकि विवाह पवित्र परंपरा है, इसे बचाना चाहिए। एक संसदीय पैनल ने मंगलवार को भारतीय न्याय संहिता (IPC) विधेयक पर अपनी रिपोर्ट में सरकार से यह सिफारिश की है।

रिपोर्ट में यह भी तर्क दिया गया है कि संशोधित व्यभिचार कानून को इसे जेंडर न्यूट्रल अपराध माना जाना चाहिए। इसके लिए पुरुष और महिला को समान रूप से उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए।


पैनल की रिपोर्ट को अगर सरकार मंजूर कर लेती है तो यह सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच के 2018 में दिए उस ऐतिहासिक फैसले के विपरीत होगी, जिसमें कहा गया था कि व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता और न ही होना चाहिए।


विपक्षी सदस्यों ने पढ़ने के लिए समय मांगा था

यह कमेटी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सितंबर में संसद में पेश किए भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और एविडेंस एक्ट की जगह लेने वाले तीन विधेयकों पर विचार के लिए बनी है। 27 अक्टूबर को संसदीय समिति की बैठक हुई थी, लेकिन ड्राफ्ट रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया। कुछ विपक्षी सदस्यों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए समिति ने ड्राफ्ट पर और अध्ययन के लिए समय मांगा था।


ये विधेयक 11 अगस्त को संसद में पेश किए गए थे। अगस्त में ही इससे जुड़ा ड्राफ्ट गृह मामलों की स्थायी समिति को भेजा गया था। कमेटी को यह ड्राफ्ट स्वीकार करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया था।


अब एडल्ट्री कानून के बारे में जान लीजिए...

अगर कोई शादीशुदा महिला किसी अन्य पुरुष से संबंध बनाती है। ऐसी स्थिति में एडल्ट्री कानून के तहत पति उस शख्स के खिलाफ केस कर सकता था। ऐसे ही अगर शादीशुदा पुरुष अन्य महिला से संबंध बनाता है तो पत्नी उस पर केस कर सकती थी।


यह भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत क्राइम था, जिसमें आरोपी को पांच साल की सजा और जुर्माना लगाने का प्रावधान था। ऐसे मामलों में महिला के खिलाफ न तो केस दर्ज होता था और न ही उसे सजा देने का प्रावधान था।


2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री कानून को रद्द कर दिया। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस कानून को असंवैधानिक बताया था। उन्होंने कहा कि एडल्ट्री को क्राइम नहीं माना जा सकता। जोसेफ शाइनी की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया था।


अमित शाह ने तीन कानूनों में बदलाव के बिल पेश किए

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त 163 साल पुराने 3 मूलभूत कानूनों में बदलाव के बिल लोकसभा में पेश किए थे। सबसे बड़ा बदलाव राजद्रोह कानून को लेकर है, जिसे नए स्वरूप में लाया जाएगा। ये बिल इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) और एविडेंस एक्ट हैं। 


3 विधेयकों से क्या बदलाव होगा

कई धाराएं और प्रावधान अब बदल जाएंगे। IPC में 511 धाराएं हैं, अब 356 बचेंगी। 175 धाराएं बदलेंगी। 8 नई जोड़ी जाएंगी, 22 धाराएं खत्म होंगी। इसी तरह CrPC में 533 धाराएं बचेंगी। 160 धाराएं बदलेंगी, 9 नई जुड़ेंगी, 9 खत्म होंगी। पूछताछ से ट्रायल तक वीडियो कॉन्फ्रेंस से करने का प्रावधान होगा, जो पहले नहीं था।


सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा। देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं। इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में हैं। इसी तरह जिला अदालतों में जजों के 25,042 पदों में से 5,850 पद खाली हैं।


तीनों बिल जांच के लिए संसदीय कमेटी के पास भेजे गए हैं। इसके बाद ये लोकसभा और राज्यसभा में पास किए जाएंगे।

 

समझिए 3 बड़े बदलाव.

राजद्रोह नहीं, अब देशद्रोह:

 ब्रिटिश काल के शब्द राजद्रोह को हटाकर देशद्रोह शब्द आएगा। प्रावधान और कड़े किए। अब धारा 150 के तहत राष्ट्र के खिलाफ कोई भी कृत्य, चाहे बोला हो या लिखा हो, या संकेत या तस्वीर या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किया हो तो 7 साल से उम्रकैद तक सजा संभव होगी। देश की एकता एवं संप्रभुता को खतरा पहुंचाना अपराध होगा। आतंकवाद शब्द भी परिभाषित। अभी IPC की धारा 124ए में राजद्रोह में 3 साल से उम्रकैद तक होती है।


राज्यों के लिए नए कानून कैसे हैं

 सरकारी दावों के अनुसार बिल पेश करने से पहले व्यापक रायशुमारी की गई है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार कानून-व्यवस्था और पुलिस राज्यों का विषय है। समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के माध्यम से राष्ट्रीय बहस हो रही है, इसलिए आपराधिक कानूनों में बदलाव से पहले राज्यों से परामर्श के साथ देश में सार्थक बहस जरूरी है।


 4 साल की चर्चा के बाद हुए हैं ये बदलाव

   सरकार की ओर से कहा गया कि 18 राज्यों, 6 केंद्र शासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 22 हाई कोर्ट, न्यायिक संस्थाओं, 142 सांसदों और 270 विधायकों के अलावा जनता ने भी इन विधेयकों को लेकर सुझाव दिए हैं। चार साल की चर्चा और इस दौरान 158 बैठकों के बाद सरकार ने बिल को पेश किया है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.